Thursday, September 23, 2010

Poetry {24/Sep/2010} - III : रब में यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते

है वतन नहीं आसां किस्मत से जो लड़ पाना,


क्यूँ अपनी मन्नतों पे एतबार नहीं करते |


आख़िर अरमां भी तो उन्ही के होते हैं पूरे,


अश्क़-ए-हालात में जो अक्स पे वार नही करते |


गयी सदिया बस किसी करिश्में के इंतेज़ार में,


क्यूँ अपने बाजू दिमाग़ पे इख्तियार नही करते |


हो मस्जिद, हो मंदिर, सबमें रब का डेरा है,


उसमें यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते |


~=ABK=~
PS: spread PEACE, not Politics 

Poetry {24/Sep/2010} - II : ग़ालिब तक गाली खाया

वो शायर ही क्या जिसने दुनिया को ना पकाया,
उस शेक्सपीयर से लेकर ग़ालिब तक गाली खाया.
~=ABK=~

Poetry {24/Sep/2010} : ह्म खुली हवा के पंछी हैं

थे शायर वो कमज़ोर, जो दुनिया के सितम सहते थे |
ह्म खुली हवा के पंछी हैं, ये सबसे अश्क़ कहते थे |
~=ABK=~

Poetry {23/Sep/2010} - III : भगाती है मुहब्बत

अर्ज़ किया है

" जब तक सुरूर ना चढ़े,
बस तब तल्क पकाती है |
एक बार मुहब्बत हुई ना,
तो फिर दर दर भगाती है |"
~=ABK=~

Poetry {23/Sep/2010} - II : मह्कत प्रीति

मूल नही, धूल नही,
यथार्थ के शूल नही,
जब प्रीति मह्कत है,
तब चंदन फूल नही|
~=ABK=~

Poetry {23/Sep/2010} : प्रीति में जल

जलना है तो प्रीति में जल, 
ये अभेद तरल है ग़ूढ सरल| 
~=ABK=~ 

Tuesday, July 06, 2010

Poetry {7/July/2010} : रात शबनम हो गई

रात थी धुली हुई, आसमां पे सो गई।

चादंनी भी ना दिखी, बादलों में खो गई।

हम आवारा से यूं ही, ढूंढा करते बारिशें।

कि तभी आवाज़ आई, रुक रात शबनम हो गई।