है वतन नहीं आसां किस्मत से जो लड़ पाना,
क्यूँ अपनी मन्नतों पे एतबार नहीं करते |
आख़िर अरमां भी तो उन्ही के होते हैं पूरे,
अश्क़-ए-हालात में जो अक्स पे वार नही करते |
गयी सदिया बस किसी करिश्में के इंतेज़ार में,
क्यूँ अपने बाजू दिमाग़ पे इख्तियार नही करते |
हो मस्जिद, हो मंदिर, सबमें रब का डेरा है,
उसमें यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते |
1 comment:
Nice poem straight from heart :)
Post a Comment