Thursday, September 23, 2010

Poetry {24/Sep/2010} - III : रब में यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते

है वतन नहीं आसां किस्मत से जो लड़ पाना,


क्यूँ अपनी मन्नतों पे एतबार नहीं करते |


आख़िर अरमां भी तो उन्ही के होते हैं पूरे,


अश्क़-ए-हालात में जो अक्स पे वार नही करते |


गयी सदिया बस किसी करिश्में के इंतेज़ार में,


क्यूँ अपने बाजू दिमाग़ पे इख्तियार नही करते |


हो मस्जिद, हो मंदिर, सबमें रब का डेरा है,


उसमें यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते |


~=ABK=~
PS: spread PEACE, not Politics 

1 comment:

शशांक शेखर "शशि" said...

Nice poem straight from heart :)