Monday, January 02, 2012

Shayari {2/Jan/2012} : कुछ और याद आता नहीं

शेर :


जब मंजिल-ए-फुरक़त पे चैन आता हो,


तो ख्याल-ए-मैक़दा भी तड़पाता नहीं |


जूनून से बढ़ी जो नज़र हिजाब की ओर,


आँखें छोड़ कुछ और याद आता नहीं |

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