शेर :
जब मंजिल-ए-फुरक़त पे चैन आता हो,
तो ख्याल-ए-मैक़दा भी तड़पाता नहीं |
जूनून से बढ़ी जो नज़र हिजाब की ओर,
आँखें छोड़ कुछ और याद आता नहीं |
जब मंजिल-ए-फुरक़त पे चैन आता हो,
तो ख्याल-ए-मैक़दा भी तड़पाता नहीं |
जूनून से बढ़ी जो नज़र हिजाब की ओर,
आँखें छोड़ कुछ और याद आता नहीं |
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