Friday, April 13, 2007

हम उनके एक सवाल पे हँस के रह गये |

हम दुनिया के जाल में फँस के रह गये,

हम जिंदगी कि चाल में फँस के रह गये |

हर दिन बेगाना है, हर रात बेगानी है,

हम उनके एक सवाल पे हँस के रह गये |

Saturday, March 31, 2007

अर्णव हूँ

स्वर्ण सिन्धु हूँ, अर्णव हूँ

विधुत वेग सा लहराऊँ ।

जो सोचूँ, लिख देता हूँ

भावना और् कैसे मैं समझाऊँ ।