Thursday, September 23, 2010

Poetry {24/Sep/2010} : ह्म खुली हवा के पंछी हैं

थे शायर वो कमज़ोर, जो दुनिया के सितम सहते थे |
ह्म खुली हवा के पंछी हैं, ये सबसे अश्क़ कहते थे |
~=ABK=~

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