है वतन नहीं आसां किस्मत से जो लड़ पाना,
क्यूँ अपनी मन्नतों पे एतबार नहीं करते |
आख़िर अरमां भी तो उन्ही के होते हैं पूरे,
अश्क़-ए-हालात में जो अक्स पे वार नही करते |
गयी सदिया बस किसी करिश्में के इंतेज़ार में,
क्यूँ अपने बाजू दिमाग़ पे इख्तियार नही करते |
हो मस्जिद, हो मंदिर, सबमें रब का डेरा है,
उसमें यकीं करने वाले से क्यूँ प्यार नही करते |
you know why - Evil Never Dies - 'coz when anyone try to kill evil, the evil moves to the killer ;)
Thursday, September 23, 2010
Poetry {24/Sep/2010} - II : ग़ालिब तक गाली खाया
वो शायर ही क्या जिसने दुनिया को ना पकाया,
उस शेक्सपीयर से लेकर ग़ालिब तक गाली खाया.
उस शेक्सपीयर से लेकर ग़ालिब तक गाली खाया.
~=ABK=~
Poetry {24/Sep/2010} : ह्म खुली हवा के पंछी हैं
थे शायर वो कमज़ोर, जो दुनिया के सितम सहते थे |
ह्म खुली हवा के पंछी हैं, ये सबसे अश्क़ कहते थे |
ह्म खुली हवा के पंछी हैं, ये सबसे अश्क़ कहते थे |
~=ABK=~
Poetry {23/Sep/2010} - III : भगाती है मुहब्बत
अर्ज़ किया है
" जब तक सुरूर ना चढ़े,
बस तब तल्क पकाती है |
एक बार मुहब्बत हुई ना,
तो फिर दर दर भगाती है |"
" जब तक सुरूर ना चढ़े,
बस तब तल्क पकाती है |
एक बार मुहब्बत हुई ना,
तो फिर दर दर भगाती है |"
~=ABK=~
Poetry {23/Sep/2010} - II : मह्कत प्रीति
मूल नही, धूल नही,
यथार्थ के शूल नही,
जब प्रीति मह्कत है,
तब चंदन फूल नही|
~=ABK=~
Poetry {23/Sep/2010} : प्रीति में जल
जलना है तो प्रीति में जल,
ये अभेद तरल है ग़ूढ सरल|
~=ABK=~
ये अभेद तरल है ग़ूढ सरल|
~=ABK=~
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